पर्वतारोही पद्मश्री हुकुम सिंह पांगती

पि.हि.प्रतिनिधि
मुनस्यारी। पर्वतारोही पद्मश्री हुकुम सिंह पांगती को याद किया गया। क्षेत्रवासियों द्वारा स्मृति पार्क में स्थिति उनकी मूर्ति पर पुष्पांजलि दी गई और उनके कार्यों का उल्लेख किया। स्व. हुकुम सिंह के मूर्ति स्थापना दिवस पर आईटीबीपी व विभूति संस्थान द्वारा यह आयोजन किया गया था।
इस अवसर पर आईटीबीपी के मुनस्यारी प्रभारी सुभाष सिंह के नेतृत्व में जवानों ने पुष्पगुच्छ अर्पित किये। लक्ष्मण सिंह पांगती लछबू ने स्व. हुकुम सिंह की जीवन गाथा को सुनाया कि कितनी विपरीत स्थितियों में वह आगे बढ़े। आयोजन में श्रीरामसिंह धर्मशक्तू, हयात सिंह रावत, हरेन्द्र सिंह धर्मशक्तू, उषापति द्विवेदी, तारा पांगती ने विचार रखे। संचालय जगत सिंह मर्तोलिया ने करते हुए कहा कि समाज ने इस शहीद स्थल को अपने हाथ में लेकर नया लुक दिया है। इस मौके पर आईटीबीपी के उप निरीक्षक हीरा सिंह मर्तोलिया, नन्दा धर्मशक्तू, हेमा पांगती, बलवन्त पांगती, नीमा देवी, मथुरा मर्तोलिया, लक्ष्मण धर्मशक्तू, देवेन्द्र धर्मशक्तू , सीता लस्पाल, जानकी मर्तोलिया, हिमांशु सिंह धर्मशक्तू, नीमा पांगती सहित तमाम लोग मोजूद थे।
कोरोना काल में क्षेत्रवासियों द्वारा अति भव्यता के साथ इस कार्यक्रम कांे किया गया। सामाजिक दूरी रखते हुए सर्वप्रथम स्मृति पार्क की साफ-सफाई की। इसके लिये मुनस्यारी ब्वाइज द्वारा समाजसेवियों के सहयोग से इस पार्क को शानदार सजाया गया था।
बताते चलें कि पद्मश्री हुकुम सिंह पांगती की मूर्ति की स्थापना आईटी बीपी के तत्कालीपन डीआईजी मंगल सिंह दानू एवं डीआईजी हीरा सिंह पंचपाल द्वारा की गई थी। रक्षामंत्री बचीसिंह रावत एवं पुष्पा पांगती द्वारा 29 अगस्त 2003 को इसका उद्घाटन किया गया था।
सीमान्त के दरकोट ग्राम में 26 फरवरी 1938 को जन्मे हुकुम सिंह बचपन से ही पर्वतारोही बनने की चाह रखते थे। सीमा पुलिस में भर्ती होने के पश्चात उन्होंने पर्वतारोहण के क्षेत्रा को चुना और वे इसकी बुलन्दियों तक जा पहुंचे। जापान, ताईवान, ईरान और अन्तर्राष्ट्रीय पर्वतीय संघ के सात अभियान संयुक्त रूप से सम्पन्न कराने वाले इस पर्वतारोही ने 28 पर्वतारोहण अभियानों की योजना तैयार की और 14 अभियानों का नेतृत्व भी किया। इस पर्वतारोही को कराकोरम पर्वत श्रृंखला का विशेषज्ञ माना जाता था। सीमा पुलिस में रहते हुए वह कई बार राष्ट्रीय स्कीइंग चैम्पियन भी रहे।
हुकुम सिंह पांगती 1963 में गोरखा राइपफल में कमीशन अधिकारी के रूप मेें चयनित हुए और उन्होंने 1967 से भारत तिब्बत सीमा पुलिस में नौकरी शुरु कर दी। उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्था उत्तरकाशी, आर्मी स्कीइंग एवं पर्वतारोहण संस्था गुलगर्म, सोनमर्ग में प्रशिक्षण लिया। आस्ट्रेलिया से एडवांस माउण्टेन गाइड एण्ड रेस्क्यू टेªनिंग भी उन्होंने की थी। पद्मश्री सम्मान से सम्मानित पांगती जी ने वर्ष 1970 में त्रिशूल, मान्चेस्टर नाम्पा, 1985 में माउण्ट सासेर काकड़ी, 1989 में नौ देशों की माउंट नन-कुन, 1990 में ईरान की सबसे बड़ी चोटी माउण्ट देमावंद, 1972 में माउण्ट देववन, 1972 में ही पंचाचूली का नेतृत्व किया। इस अभियान के अलावा वर्ष 1973 में माउण्ट बालकुन, 1974 में माउण्ट शिवलिंग, 1976 में स्काइ त्रिशूल, 1990 में माउण्ट सासेर कांगड़ी, 1991 में माउण्ट कंचनजंगा पूर्वी छोर से, 1992 में एलबर्ट विले ;फ्रांस, इसी वर्ष माउण्ट एवरेस्ट पर फतह पर जा रहे पर्वतरोही दल का नेतृत्व किया।
1988 में इण्डियन माउण्टेनिंग पफाउण्डेशन के द्वारा उन्हें स्वर्ण पदक से अलंकृत किया गया। भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों देखते हुए वर्ष 1992 में पद्मश्री से अलंकृत किया। उ.प्र.सरकार द्वारा के द्वारा भी इस पर्वतारोही को यूपी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनके योगदान को देखते हुए भारतीय शीतकालीन खेल फैडरेशन ने इन्हें अपना सचिव बनाया था।

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