
न्यौला पंचाचूली
उत्तराखण्ड हिमालय की प्राकृतिक सुन्दरता का आकर्षण जितना खूबसूरत है, उतनी ही ‘राजुला-मालूशाही’ की अमर प्रेम मिलन कथा भी एक है। जो प्रेम पर समर्पण का प्रतीक मानी जाती है। यह प्रेम मिलन की गाथा विषम सांस्कृति सामाजिकता के बाद भी प्रेम के प्रति प्रेमिका राजुला स्वयं को समर्पित कर स्वप्न प्रेमी के पास पहुंचना और राजुला का अपने प्रान्त ‘रं लुंग्बा’ और पूरे भोंट देश को बचाने की खातिर, अपने मन-मस्तिष्क का आत्म-समर्पण करती है। यह प्रेम मिलन की गाथा ‘प्रेमी-प्रेमिका’ के परस्पर प्रेम के प्रति समर्पण-त्याग की ऐसी इबारत लिखती है जो तत्कालीन विषम सामाजिक, सांस्कृतिक और सभ्यता को स्वीकार कर नया इतिहास बनाती है।
भोंट देश का प्रान्त रं-लुग्बा दारमा घाटी में विख्यात मालदार व्यापारी सुनपति भोट रं रहते थे। वे धन-धान्य और सभी सुखों से परिपूर्ण होने के बाद भी सन्तान सुख से अभागे थे। सन्तान सुख भोगने की ललक में उनको परेशान देख उन्हीं के घनिष्ट व्यापारी मित्र ने बताया कि आप सन्तान प्राप्ति के लिये बागनाथ मन्दिर (वर्तमान बागेश्वर) जाकर शवि की आराधना करें तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सन्तान प्राप्ति के लिये शिव आराधना करने बागेश्वर बागनाथ मन्दिर गए, वहाँ वा पर उनकी मुलाकात बैराठ (वर्तमान चैखुटिया) के राजा दुलाशाह व उनकी पत्नी से हुई, वह भी सन्तान की चाह मे बागनाथ मन्दिर आए हुए थे। दोनों की आपस में अच्छी दोस्ती हो गई और दोनों ने आपसी दोस्ती बनाए रखने के लिये एक-दूसरे को वचन दिया, यदि हमारी सन्तान ‘लड़का-लड़की’ हुई तो उनकी आपसी में शादी करा देंगे। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से सुनपति भोट रं के घर में पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम राजुला रखा गया। कुछ दिनों पहले इसी दौरान बैराठ के राज दुलाशाह के पुत्र जन्म हुआ। उनका नाम मालूशाही रखा गया। पुत्र जन्म के बाद राजा दुलाशाह ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य के बारे में पूछा, ज्योतिष ने बताया- हे राजा तेरा पुत्र बहुरंगी है लेकिन इसकी बाल्य/अल्प आयु में ही मृत्यु का योग है। इसके निवारण के लिये जन्म नामकरण के 21वें दिन बाद इसका ब्याह किसी नवरंगी बाल कन्या से करना पड़ेगा। राजा दुलाशाह ने बागनाथ मन्दिर प्रांगण में अपनी बात याद करते हुए अपने पुरोहित को भोंट प्रदेश रं लुंग्बा दारमा सुनपति भोट (रं) के वहाँ भेजा। वहाँ की स्थिति जानकर प्रतिनिधि मण्डल ने सुनपति भोंट को राजा दुलाशाह की बात बतायी, सुनपति भोंट ने अपने दिये बचन का मान रखते हुए उनकी बात को स्वीकार किया और अपनी नवजात पुत्री का प्रतीकात्मक विवाह (जन्ममंगली/बालमंगली) मालूशाही से कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। बालमंगली के कुछ दिनों बाद राजा दुलाशाह की मृत्यु हो गई। इस अवसर का पफायदा राज्य प्रतिनिधियों ने उठाते हुए यह कुप्रचार कर दिया कि जो बालिका जन्ममंगली के बाद ही अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आएगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी गई। धीरे-धीरे मालू और राजुला दोनों बाल्यावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने लगे। राजुला का रंगरूप सौन्दर्य आकर्षण पूर्णिमा के चाँद की तरह पूरे भोट प्रान्त रं लुंग्बा के साथ पूरे भोट देश और सीमान्त विदेशों तक के लोगों में चर्चा का विषय बन गया था। तभी सुनपति भोट रं को लगा कि मैंने राजुला को बैराठ राजकुमार से विवाह का बचन राजा दुलाशाह को दिया था लेकिन वहाँ से कोई खबर नहीं आ रही हैै। यही सोचकर वे चिन्तित रहने लगे।
एक दिन राजुला ने अपनी माँ से पूछा-
माँ दिशाओं में कौन सी दिशा?
पेड़ में कौन सा पेड़ बड़ा?
गंगाओं में कौन सी गंगा?
देवों में कौन सा देव?
राजाओं में कौन सा राजा?
देशों में कौन सा देश?
माँ ने उत्तर दिया-
दिशाओं में सबसे प्यारी पूरब दिशा जो धरा को प्रकाशवान रखती है।
पेड़ों में सबसे बड़ा पेड़ पीपल, जिसमें देवी-देवता वास करते हैं।
गंगाओं में सबसे बड़ी गंगा भागीरथी, जो असंख्य जनों की प्यास बुझाती है और सबसे अधिक जल की आवश्यकताओं को पूरी करती है।
देवताओं में सबसे बड़ा देव ह्या गंगरी ‘महादेव’, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आशुतोष है।
राजाओं में सबसे बड़ा राजा दुलाशाह, जो मानवीय व्यक्तित्व के धनी हैं।
देशों में देश है रंगीलो बैराठ। तब राजुला मुस्कुराते हुए अपनी माँ से कहती है, माँ मेरा ब्याह रंगीलो बैराठ के राजकुमार से ही करना। इसी बीच राजकुमार मालू ने सपनू में राजुला को दखा, उसकी मोहिनी रूप व शालीन स्वभाव को देखकर मालू मोहित हो गया। मालू ने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर जाउँफगा। यही स्वप्न राजुला को भी हुआ। इसी दौरन हूण देश का राजा विक्खीपाल शादीशुदा होने के बाद भी भोंट प्रान्त रं लुंग्बा पुत्राी राजुला की खूबसूरत मोहिनी रूप के बारे में सुनकर दारमा सुनपति भोट के यहाँ उनकी पुत्री राजुला का हाथ मांगने आया और मालदार सुनपति भोट रं को धमकाया, अगर तुमने अपनी बेटी का ब्याह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे भोट प्रान्त रं लुंग्बा दारमा व पूरे भोट देश को गुलाम कर देंगे।
एक ओर राजकुमार मालूशाही (स्वप्न प्रेमी)) प्यार व परस्पर बचन। दूसरी ओर हूण देश राजा विक्खीपाल की धमकी। इन सब असमंजस से व्यथित होकर राजुला ने निर्णय लिया, क्यों न मैं स्वयं बैराठ जाउं।
माघ माह बागेश्वर उत्तरायणी मेला लगने का समय होता है। (मिलन हेतु जाने-आने का समय) राजुला अपनी माँ को बिना स्वप्न प्रेम की बात बताए, बैराठ देश का रास्ता पूछा, लेकिन राजुला की माँ ने क्यों कहते हुए कहा, बेटी तुझे तो हूण देश को जाना है, बैराठ के रास्ते का तुम्हें क्या मतलब। इस बीच जब बैराठ राजकुमार मालू ने स्वप्न प्रेम वाली बात अपनी माँ को बताई और वे भोट प्रान्त रं लुंग्बा, दारमा घाटी जाकर राजुला से विवाह कर लाने की बात माँ का कही, माँ ने अलग बेमेल सामाजिक, सांस्कृतिक, सभ्यता व सुदूर भोट देश कहकर मालू को समझाया। पर मालू इन सभी बातों को न मानते हुए माँ पर दबाव बनाने लगा। माँ अपने पुत्र को खोने के डर से मालू को एक वर्ष की लम्बी निद्रा के लिए निद्रा जड़ी-बूटी सुंघा दी, जिससे वे अपनी स्वप्न प्रेम वाली बात भूल गया।
इसी दौरान राजुला ने सहेलियों संग और अपने सेवक व्यापारिक समूह के साथ उत्तरायणी बागेश्वर मेला देखने जाने का आग्रह किया। इस मेले में दरमानी और भोट प्रान्त व्यापारी भी व्यापार हेतु बागेश्वर मेले में आते थे। बागेश्वर बागनाथ मेला देखने के बहाने से पहली बार राजुला सीपू-बलाती हिम दर्रा मार्ग व खतरनाक कठिनाई युक्त मार्ग को पार कर मुनस्यारी होते हुए सरयू नदी के किनारे लगा बागेश्वर उत्तरायणी मेले में पहँुची। बागेश्वर बागनाथ मन्दिर का दर्शन कर आगे बागनाथ की कृपा से कफू पक्षी रूपी सन्यासी बाबा/लामा राजुला को बैराठ राज्य तक पहँुचाने का मार्ग दिखाया। राजुला मालू क कक्ष तक पहँुची लेकिन मालू तो एक वर्ष की जड़ी निद्रा के बश में अचेत पड़ा था। इसलिये मालू उठ न पाया। निराश होकर राजुला ने अपनी रत्न जड़ी अंगूठी निकाल कर मालू को पहना दी और एक पत्रा लिख कर तकिये के नीचे रख दिया। राजुला रोते-रोते दुःखी होकर अपने प्रान्त ;वर्तमान रं लुंग्बा,(दारमा) लौट गई।
बैराठ राज्य में सब सामान्य हो जाने व मालू की जड़ी निद्रा पूर्ण होने के बाद, जैसे ही मालू को होश आया, उसने अपने अंगुली में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी, जो उसे स्वप्न प्रेम की बात याद आती है, और लिखा गया पत्र भी उसे दिखा जिसमें लिखा था कि हे मालू मैं तो तुम्हारे पास आई थी लेकिन तुम निद्रा के वश में अचेत पड़े थे। अगर तुमने स्वप्न-प्रेम में मुझे सच्चे मन से वचन दिया है तो मुझे लेने हूण देश आना क्योंकि मेरे पिता जी भोट प्रान्त रं-लुंग्बा जनों और पूरे भोट देश जनों को हूण देश की क्रूरता, अत्याचार व गुलामी से बचाने के खातिर मुझे हूण देश राजा विक्खीपाल से ब्याह रहे हैं। ये सब घटित घटनाक्रम के बारे में सोच कर राजकुमार मालू अपने के जिम्मेदार समझते हुए बहुत दुःखी हुआ। तब राजकुमार मालू अपने गुरु की शरण में गया, इस प्रेम घटना चक्र के बारे में गुरु जी को बताकर हूण देश जाने की अनुमति मांगी। गुरु जी न चाहते हुए उनके स्वप्न प्रेम वाली वास्तविक प्रेम-लीला को सुनकर मालू को साधू के वेश में हूण जाने की अनुमति दी। राजकुमार मालू जोगी (साधू) का वेश धारण कर अपनी साधू रूपी सैनिकों के साथ भोट प्रान्त रं-लुुुुुुुंग्बा, दारमा घाटी होते हुए हूण देश सीमा पर पहँुचा। उस हूण देश के सीमान्त मार्गों में ‘विष पानी’ की बावड़ियां लगी थी। उसका पानी पीकर कुछ साधू सैनिकों के साथ मालू भी अचेत हो गए। उस विष की अधिष्ठात्री विषला को साधू मालू की चेतन तड़पन देख दया आ गई। देवी ने मालू का विष निकाल दिया। मालू वही साधू वेश में घूमते-घूमते राजमहल परिक्षेत्र तक पहँुचा। वहाँ बड़ी चहल-पहल थी। क्योंकि राजा विक्खीपाल राजुला को कुछ दिनों पहले ब्याह का लाया था। साधू मालू ने अलख (उँची आवाज) लगाते हुए बोला- ‘दे माई भिक्षा दे, माई भिक्षा’। श्रृंगार व गहनों से लदी राजुला सोने की थाल में भिक्षा लेकर आई और कहा- लो जोगी, भिक्षा लो। पर जोगी मालू उसे देखता रह गया। उसने अपने सपने में आई राजुला को साक्षात देखा तो वे अपनी सुध्-बुध् ही भूल गया।
जोगी मालू ने कहा- अरे रानी तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो। यहाँ कहाँ से आ गई। रानी राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरे हाथ की रेखाएं क्या कहती हैं। तब जोगी ने कहा कि मैं बिना नाम, ग्राम, प्रान्त के हाथ नहीं देखता। तब रानी ने कहा- मैं सुनपति भोट (रं) मालदार व्यापारी की लड़की राजुला हूं। अब बता जोगी मेरे भाग्य में क्या है। तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा चेली (लड़की) भाग्य कैसे फूटा। तेरे भाग्य में तो रंगीलो बैराठ का राजकुमार मालूशाही है।
राजुला ने रोत हुए कहा- हे जोगी मेरे माँ-बाप ने तो मुझे अपना भोट प्रान्त रं लुंग्बा, अपना भोट देश बचाने के खातिर हूण राजा विक्खीपाल से विवाह करवाया। अपने रं लुंग्बा को बचाने के लिये मैंने ब्याह किया। यह सुनते ही मालूशाही अपना जागी ( साधू ) वेश उतारकर कहता है- हे राजुला! मैं रंगीलो बैराठ का राजकुमार मालूशाही हँू। मैंने तेरे लिये ही जोगी का वेश धरण किया है। मैं तुझे यहाँ से छुड़ाकर ले जाउँफगा। तब राजुला ने मालू का बैठने के लिये कहा और राजा विक्खीपाल को बुलाया। राजुला ने विक्खीपाल से कहा- ये जोगी बड़ज्ञ काम का है और बहुत विद्याएं जानता है। यह हमारे राज्य के काम आयेगा। राजा विक्खीपाल रानी राजुला की बात को ना नहीं कर पाया और मान गया। लेकिन जोगी के मुख पर राजसी प्रताप देखकर उसे थोड़ा शक तो हो ही गया, पर राजुला के खातिर जोगी मालू को महल परिक्षेत्रा में रहने की अनुमति दे दी। साथ ही उसपर नज़र रखता रहा। जोगी मालू राजुला से छुप-छुप कर मिलता रहा। बाद में एक दिन विक्खीपाल को यह बात पता चल गयी कि यह तो बैराठ का राजकुमार मालूशाही है। उसने मालू को मारने का षड़यन्त्रा रचा और खास दिन, भोजन बनवाया जिसमें उसने जड़ी विष जहर डाल रखा था। मालू को खाने पर आमन्त्रित किया गया। भोजन करते ही मालूशाही जड़ी विष की जकड़न से वहीं अचेत हो गय। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी वहीं अचेत हो गई। बाद में हूण राजा विक्खीपाल ने राजुला को कैद में रख दिया। उसी रात मालू की माँ ने स्वप्न में मालू ने बताया कि माँ मैं हूण देश में जड़ी विष से मर रहा हँू। इस जगह पर हँू। माता जी ने मालू को वहाँ से लाने के लिये मामा मृत्योन्द्र सिंह (गढ़वाल के किसी गढ़ी के राजा थे) और सिदुवा-विदुवा रमोल (जड़ी बूटी बोकसाड़ी विद्या के ज्ञाता) के साथ हूण देश भेजा।
मालू के मामा राजा मृत्योन्द्र दोनों रमोला भाई व सैनिकों को लेकर भोट देश होते हुए हूण देश पहुंचे। रमोल भाई खुफिया रूप से राजमहल परिक्षेत्र में जाकर राजकुमार का पता लगाया और अपनी अपना जड़ी-विष बोकसाड़ी विद्या का प्रयोग कर मालू को जड़ी-विष की जकड़न से बाहर निकालकर जीवित किया। मालू हूण सैनिकों के वेश में राजमहल जाकर कैद राजुला को जगाकर अपने साथ लाया। फिर मामा मृत्योन्द्र के सैनिकों ने विक्खीपाल के अधिकतर सैनिकों के साथ विक्खीपाल को भी मार डाला। राजकुमार मालू ने बैराठ सन्देश भिजवाया कि मै। राजुला को अपनी धर्मपत्नी बनाकर ला रहा हँू।
मालू-राजुला प्राचीन भोट प्रान्त रं लुंग्बा, दारमा घाटी में पिता सुनपति भोट रं और माता जी का आशीर्वाद लेकर वे सीपू-बलाती हिम दर्रा मार्ग से होते हुए बैराठ देश लौट गये। वहाँ उनकी धूमधाम से शादी हुई। दोनों राजी-खुशी जिन्दगी जीते हुए प्रजा की सेवा करने लगे।