संगीतकार नेत्र सिंह ल्वांल

गणेश प्रताप सिंह ल्वांल
श्री नेत्र सिंह ल्वांल पुत्र श्री चन्द्र सिंह जी का जन्म 1925 मैं मल्ला दुम्मर मैं हुआ,उनको घर गांव मैं उमेद सिंह के नाम से जानते थे, उनका पिताजी का नाम श्री चन्द्र सिंह और माता जी का नाम श्रीमती आमरा देवी, उनका प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 5 तक मुनस्यारी में हुआ तद पस्चात 6 कक्षा के बाद पढ़ाई हेतु अल्मोड़ा गए परंतु पढ़ाई मैं उनका मन नहीं लगा और वाफिस घर आ गए। घर में भी उनका काम में मन नहीं लगता था, उस समय जीवन यापन बहुत कठिन था मुनस्यारी से जोहार और जोहार से हुंणदेश भेड़ बकड़ी, घोड़ों के साथ और वापिसी मुनस्यारी फिर नगड़ झलौरी जाते थे, एक बार उनका अपने पिताजी के साथ कुछ बात को लेकर बहस हुआ फिर घर से भागकर अल्मोड़ा चले गए थे। वहां 1944 मैं 1 कुमाऊं रेजिमेंट मैं भर्ती होकर रानीखेत गए। उनका लगाव बचपन से ही संगीत से था। खुद गीत की रचना कर उसे संगीत मैं पिरोते थे, उन्होंने 1950 को फौज की नौकरी छोड़ मुंबई की ओर चल दिए, मुंबई नगरी मैं काफी संघर्ष के पश्चात भी उन्हें कोई काम संगीत या गायकी मैं हासिल नहीं हुआ, क्युकी उनका कोई संगीत पृष्ठभूमि के नही था फिर उन्होंने 1957-1958 मैं गंधर्व महाविद्यालय पुणे से तबला वादन मैं डिप्लोमा किया और संगीतकार श्रीमती उषा खन्ना के साथ तबला वादन प्रारंभ किया। उनके साथ मैं मुनस्यारी क्षेत्र के श्री जवाहर राम जी थे जिसे उन्होंने उषा खन्ना के साथ बांसुरी वादन के लिए रखा था, बाद में जवाहर राम जी को चंद्र प्रकाश के नाम से जाने जाते थे। जवाहर राम जी के दो बिटिया है जो कि सम्पन्न परिवार मैं ब्याही है, जवाहर राम जी का मृत्यु हो चुका है। कुछ वर्ष के बाद श्री नेत्र सिंह जी ने उषा खन्ना जी संगीत टीम को भी अलविदा कर दिया था क्योंकि वे एक स्वतंत्र विचार के इंसान थे किसी भी गलत बात पर समझौता नही करते थे, संगीत उनके रग रग मैं बसा था और संगीत को जीते थे, उन्होंने अपना रचनाये, गीत कुमाउंनी बोली में शुरु किया और पहली बार 1960 के दौरान घाटकोपर मैं कुमाऊनी रामलीला की शुरुवात किया और उसमे संगीत दिया, वहां उनको नेत्र सिंह कुमाउंनी के नाम से जाना जाता था। उनके साथ सहायक के तौर पर चंद्र प्रकाश जी भी थे। संगीत का शौक तो था परंतु संगीत का शौक भूखे पेट तो नही भर सकता अतः उन्होंने मुंबई मैं लाइट हाउस लाइट शिप में बतौर सिक्योरिटी मैं नौकरी करना शुरु किया जिससे आजीविका और शौक दोनो पूरा हुआ। अपनी रचना कुमाऊनी बोली में लिखना शुरु किया मल्ला दुम्मर मेैंं हरी प्रदर्शनी में 1960 मैं पहली बार संगीत कार्यक्रम की शुरुवात किया गया जिसमें उनका प्रसिद्ध गीत ‘हरी सिंह ज्यु की यादगार’ है, उन्होंने अनेकों गीतों की रचना किया और जब सन 1961 मदकोट की किसान मेला मैं अपने गीतों को मेला मेैंं गया ‘ठंडो ठंडो पानी, हैमी छू कुमय्या हमारो कुमाऊं, आज क दिन छु मैं घर माज और एक गीत जो कि बहुत ही प्रसिद्ध है बरस को बार मैना इसके अलावा कई गीत ऐसे है जो उन्होंने लिखा,उनका संगीत और गीत से प्रभावित होकर तब उस समय का जिला अधिकारी श्री जीवन चंद पांडेय जी ने उनको पुरुस्कार से नवाजा, तब से पूरे मुनस्यारी मेैंं उन्हे लोग नेत्र सिंह कलाकार के नाम से जानते थे। उन्होंने शादी नही किया पूरा जीवन संगीत को जिया, उनके छोटा भाई स्वर्गीय प्रताप सिंह जो कि दुम्मर गांव मैं निवास करते थे उनके अभी दो पुत्र है बड़े का नाम गणेश और अनुज का नाम देवेंद्र दोनो फिलहाल हल्द्वानी में निवास करते है। श्री नेत्र सिंह जी 1984 मैं मुम्बई से सेवानिवर्ती हुये और दुम्मर गांव में रहने लगे परन्तु उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण 14 नवम्बर 1986 को हमेशा के लिए परमधाम को सिधार गए। मैं बचपन मैं 4 वर्ष तक उनके साथ मुंबई मैं रहा, उनका संगीत से लगाओ मुझे अभी याद आता है वे अधिकतर समय अपने संगीत मैं इतना तल्लीन रहते थे कि उन्हें पता नही चलता, कौन आ रहे जब ध्यान हट जाता तब पूछता था कब आये, परंतु वे नही चाहते कि मेरा संगीत लगाओ। वह कहते थे पढ़ाई करो और कुछ नही करना है, क्योंकि उन्हे वो मुकाम हासिल नहीं हुआ जिसमें वो काबिल थे इसलिए वे कहते थे कि संगीत मैं कुछ नही है। यदि आज की तरह सोशल मीडिया और अन्य होता तो शायद प्रसिद्धि मिलता।
(लेखक कलाकार नेत्र सिंह जी के भतीजे हैं)

जानवर भी शान थे हरिप्रदर्शनी के

कर्ण सिंह जंगपांगी से बातचीज
पि.हि. प्रतिनिधि
आज स्वच्छता को लेकर तमाम तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं, उसके बाद गन्दगी से निजात नहीं मिल रही है। इसका एक ही तरकी है कि हम अपने आप से सुधर जाएं। इसके लिये सीमान्त क्षेत्र जोहार के पुराने उदाहरण देखे जा सकते हैं। किसी भी त्यौहार पर ग्रामवासी मिलकर चारों ओर सफाई अभियान चलाते थे। इसी प्रकार घरों में सफाई होती थी, बाद में एक टीम घर-घर निरीक्षण करती थी, जो घर सबसे स्वच्छ हो उसे पुरस्कार दिया जाता था।
जोहार और हरिप्रदर्शनी पर बातचीत करते हुए कर्ण सिंह जंगपांगी यह जानकारी देेते हैं। केदार सिंह जंगपांगी और श्रीमती राजी देवी के पुत्र लखनउ निवासी कर्ण सिंह चार भाई-बहिनों में सबसे बड़े हैं। कर्ण सिंह, बहादुर सिंह, दिनेश सिंह भाईयों के अलावा इनकी बहन जमुना हैं। सीमान्त के इस परिवार ने उन्हीं परम्पराओं का अनुसरण किया जो देखा। कर्मठता और दृढ़ता के साथ परिवार के सदस्य आज उच्चपदों पर हैं।
जोहार से लेकर निचली घाटियों तक की यात्राओं के किस्सों के साथ ही मल्ला दुम्मर की हरिप्रदर्शन की यादें कर्ण सिंह को ताजा हैं। वह बताते हैं कि प्रदर्शनी में लोग अपने-अपने जानवर भी लाते थे। घोड़े, भेड़-बकरियों के साथ प्रदर्शनी में प्रतियोगिता होती थी। तकुला दंगल ;चरखा कताई के लिये भी उत्सुकता रहती थी। निश्चित समय पर जो सबसे अच्छा और ज्यादा उन कातता था उसे पुरस्कृत किया जाता था। इसी प्रकार जड़ी-बूटियों, कृषि औजार, घरेलू उत्पात, उनी कारोबार को लेकर बहुत उत्साह था। समय के साथ लोगों की रुचियाँ बदली हैं। बाजार न होने के कारण भी इस प्रकार के उद्योग-धन्धे पर प्रभाव पड़ा है। श्री जंगपांगी सभी से अपील करते हैं कि वह अपनी जड़ों को टटोलें, जिन कठिनाईयों से घरेलू उद्योग धन्धे स्थापित किये गये थे, उन्हें बरकरार रखा जाए। इन्हीं सब बातों के लिये हरि प्रदर्शनी की परिकल्पना थी। जोहार के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने के साथ ही नई पीढ़ियों का मिलन मल्ला जोहार का यह आयोजन है।