जानवर भी शान थे हरिप्रदर्शनी के

कर्ण सिंह जंगपांगी से बातचीज
पि.हि. प्रतिनिधि
आज स्वच्छता को लेकर तमाम तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं, उसके बाद गन्दगी से निजात नहीं मिल रही है। इसका एक ही तरकी है कि हम अपने आप से सुधर जाएं। इसके लिये सीमान्त क्षेत्र जोहार के पुराने उदाहरण देखे जा सकते हैं। किसी भी त्यौहार पर ग्रामवासी मिलकर चारों ओर सफाई अभियान चलाते थे। इसी प्रकार घरों में सफाई होती थी, बाद में एक टीम घर-घर निरीक्षण करती थी, जो घर सबसे स्वच्छ हो उसे पुरस्कार दिया जाता था।
जोहार और हरिप्रदर्शनी पर बातचीत करते हुए कर्ण सिंह जंगपांगी यह जानकारी देेते हैं। केदार सिंह जंगपांगी और श्रीमती राजी देवी के पुत्र लखनउ निवासी कर्ण सिंह चार भाई-बहिनों में सबसे बड़े हैं। कर्ण सिंह, बहादुर सिंह, दिनेश सिंह भाईयों के अलावा इनकी बहन जमुना हैं। सीमान्त के इस परिवार ने उन्हीं परम्पराओं का अनुसरण किया जो देखा। कर्मठता और दृढ़ता के साथ परिवार के सदस्य आज उच्चपदों पर हैं।
जोहार से लेकर निचली घाटियों तक की यात्राओं के किस्सों के साथ ही मल्ला दुम्मर की हरिप्रदर्शन की यादें कर्ण सिंह को ताजा हैं। वह बताते हैं कि प्रदर्शनी में लोग अपने-अपने जानवर भी लाते थे। घोड़े, भेड़-बकरियों के साथ प्रदर्शनी में प्रतियोगिता होती थी। तकुला दंगल ;चरखा कताई के लिये भी उत्सुकता रहती थी। निश्चित समय पर जो सबसे अच्छा और ज्यादा उन कातता था उसे पुरस्कृत किया जाता था। इसी प्रकार जड़ी-बूटियों, कृषि औजार, घरेलू उत्पात, उनी कारोबार को लेकर बहुत उत्साह था। समय के साथ लोगों की रुचियाँ बदली हैं। बाजार न होने के कारण भी इस प्रकार के उद्योग-धन्धे पर प्रभाव पड़ा है। श्री जंगपांगी सभी से अपील करते हैं कि वह अपनी जड़ों को टटोलें, जिन कठिनाईयों से घरेलू उद्योग धन्धे स्थापित किये गये थे, उन्हें बरकरार रखा जाए। इन्हीं सब बातों के लिये हरि प्रदर्शनी की परिकल्पना थी। जोहार के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने के साथ ही नई पीढ़ियों का मिलन मल्ला जोहार का यह आयोजन है।

समर्पित गुरुजनों से संवारा जीवन जो हमेशा याद रहेंगे

चन्दन सिंह रावत बातचीज: तेजम का बचपन
पि.हि. प्रतिनिधि
हल्द्वानी। आज स्कूल-कालेजों में नवाचार को लेकर बहुत हल्ला किया जा रहा है जबकि पहले से गुरुजन पढ़ाने के साथ साथ समाज संवारने को अपनी जिम्मेदारी समझते थे और उनका समर्पण विद्यार्थियों का जीवन संवारने वाला था।
तेजम के पुराने दिनों को याद करते हुए चन्दन सिंह रावत बताते हैं कि विशम्भरदत्त जोशी जी प्रा.पाठशाला में गुरु जी थे, जिन्होंने खेल-खेल में बच्चों का जीवन संवारा। वह पहले धापा में भी रहे। धापा से तेजम आने के बाद ग्रामीण परिस्थितियों में वहां के अनुरूप बच्चों को सिखाते थे। बताते चलें कि तेजम के प्रहलाद सिंह जी के पुत्रों में चन्दन सिंह, डाॅ.प्रद्युमन सिंह, लक्ष्मण सिंह;लखनउ, ईश्वर सिंह ;देहरादून हैं। सारी स्थितियों को जीतने के बाद भी रावतों का यह परिवार अपने ग्राम, अपने गुरुजनों का स्मरण करता है और जुड़ा हुआ है। यह प्रेरणादायक है, यही नवाचार है।
चन्दन सिंह जी बतात हैं कि विशनदत्त मास्साब 1960 से 64 तक तेजम में रहे, जो इससे पहले मुनस्यारी के धापा में थे। स्कूल में पढ़ाई के लिये पूरा समय देने के अलावा प्रातःकाल प्रार्थना के समय ही उत्कृष्ट कार्यों के लिये बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता था ताकि साथी बच्चे भी उससे उत्साहित हो। उदाहरण के लिये- मास्साब कहते आज फलां बालक बहुत साफ-सुथरा बनकर आया है। उसे प्रार्थना में आगे बुलाया जाता था। उसे देखकर अन्य साथी भी तैयारी करते। ग्राम को स्वच्छ रखना, जानवरों को किसी के भी खेतों में जाने से रोकने, एक-दूसरे की मदद करने जैसे विचार गुरुजन मन के भीतर कर देते थे जो आज भी हैं।