पि.हि. प्रतिनिधि
रोहित शेखर उस युवा का नाम है जिसने चार बार के मुख्यमंत्री और राज्यपाल रहे नारायणदत्त तिवारी सेे लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद जीत गया था लेकिन वह छोटी उम्र में हार गया। माता उज्जवला और पिता एनडी तिवारी के पुत्र रोहित शेखर ज्यों ही अपनी निजी लड़ाई में सफल हुए और एनडी के उत्तराधिकारी के रूप में समाज के सामने आये, राजनीति के झूले में सवार दिग्गज डोलने लगे थे। विशेषकर नैनीताल लोकसभा सहित तराई की विधनसभा सीटों पर तिवारी जी चाहने वाले रोहित को घेरकर चलने लगे और माना जा रहा था वह किसी न किसी तरह जीत दर्ज कर रास्ता बना लेंगे। रोहित हवा का रुख एक ओर गया गया था। कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी पार्टी के अलावा निर्दलीय मौका उनके पास था।
पिता-पुत्र के मिलन के बाद कुछ नेताओं को परेशानी महसूस होने लगी थी कि अब रोहित के प्रकट होते ही वह मौका पा जायेगा। तिवारी जी भी पुत्र मोह में रोहित के लिये अवसर बनाने लगे थे लेकिन अपनी निजी जिन्दगी के पन्नों से जो घाव उन्हें मिले थे, ऐसे में कोई भी पार्टी उन्हें अपनाने में परहेज कर रही थी। कांग्रेस पार्टी के सिपाही के रूप में उम्र बिताने वाले एनडी से कांग्रेसी नेताओं ने दूरी कर ली थी। यहाँ तक कि जिन लोगों को तिवारी जी ने पनपाया वह भी दूर भागने लगे थे। ऐसे में एक उनके पारिवारिक दीपक बल्यूटिया ने अपने साथियों के साथ मिलकर हल्द्वानी में आयोजन कर दिया। एनडी के जन्मदिन के इस भव्य आयोजन में उज्जवला-एनडी-रोहित सहित सभी पार्टियों के दिग्गज आये। समाजवादी पार्टी का जोश सबसे ज्यादा रहा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव पं. तिवारी को बहुत मानते रहे हैं। उनके सुपुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बुजुर्ग एनडी का सम्मान करते। उनकी इच्छा थी कि आयोजन के बहाने रोहित सपा में सम्मिलित हो जाएं और उत्तराखण्ड में पार्टी का खाता खुले। यदि उस समय रोहित सपा के टिकट पर चुनाव लड़ जाते तो निश्चित रूप से एनडी के संरक्षण में वह हल्द्वानी या तराई की किसी विधनसभा सीट पर सफल हो सकते थे। कांग्रेस से झटके खा चुके एनडी की मंशा उसी पार्टी में रोहित को स्थापित करने की थी परन्तु अपने राजनैतिक भविष्य के लिये दूसरे नेता यह पचा नहीं सकते थे। इसके बाद भाजपा में रोहित के लिये कोशिश की गई लेकिन एनडी के व्यक्तिगत जीवन के पन्नों को उघाड़ते हुए इन दोनों पार्टियों ने रोहित को अवसर नहीं दिया। समय बीता और रोहित इन तीनों पार्टियों में से किसी में भी प्रत्याशी के रूप में अनफिट मान लिये गये। जबकि हवा का रुख एक ओर करने वाले इस युवा में कई सम्भावनाएं थीं। 11 मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट में वकील इंदौर निवासी अपूर्वा शुक्ला के साथ इनका विवाह हुआ। पिता एनडी के अस्वस्थ्य होने के कारण यह विवाह बेहद सादे रूप में की गई और वर-बध्ू अस्पताल में पिता का आशीर्वाद लेने गये।
एनडी का परिवार बनने के बाद से रोहित लगातार अपनों के बीच जुड़े रहे और 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के मतदान के लिये बिन्दुखत्ता आए थे। अपनी माँ उज्जवला के स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह दिल्ली लौटना पड़ा। जहाँ उनकी संदिग्ध् हालतों में मौत हो गई।
उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन.डी.तिवारी के पुत्र रोहित शेखर का 16 अप्रैल 2019 को निध्न हो गया। 39 वर्षीय रोहित डिफंेस कालौनी में रहते थे। उन्हें दिल्ली के मैक्स साकेत अस्पताल में लाया गया, जहाँ डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। उनकी मौत को संदिग्ध् मानते हुए सवाल भी उठाये जा रहे हैं। रिपोर्ट में उनके गले पर निशान बताये गये हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद कहा गया है कि रोहित को गला घोंटकर मारा गया। मौत वाले दिन रोहित की माँ अपने घर तिलक लेन स्थित सरकारी आवास पर चली गई थीं। दिल्ली पुलिस ने पीएम रिपोर्ट के आधार पर अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। अपराध् शाखा इसकी जाँच कर रही है। इस प्रकरण में शक परिवार पर ही है। चल रही जाँच के बाद पता चला कि रोहित और उनकी पत्नी अपूर्वा के बीच विवाद था। शादी से पहले दोनों लिव इन रिलेशनशिप में थे और बाद में शादी कर ली।
रोहित की माँ उज्जवला ने बताया कि रोहित तनाव में रहता था, जिस कारण उसे नींद तक नहीं आती थी। पुलिस ने छानबीन और पूछताछ में रोहित की पत्नी अपूर्वा, उज्जवला के चचेरे भाई राजीव उसकी पत्नी कुमकुम, घर के नौकर मारथा के साथ बात की है। रोहित तो मौत के मुंह चला गया लेकिन उसका जिन्दगी अपने आगे-पीछे सवाल ही सवाल छोड़ चुकी है। इस जीवन-जगत में कौन सत्य के कितने करीब है और स्वार्थो के लिये कौन किसके साथ जुड़ा रहता है। यह सब रोहित शेखर के जीवन से देखने को मिल रहा है। रोहित भी जीवन के बहुत सारे सत्य को नजदीक से देख चुका था इसलिये वह खुलकर जीना चाहता था, जब तक रहा भिड़ता रहा। उसकी मौत का सच सबको चैंकाने वाला है।