
भुवन बिष्ट
इस समय पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से त्रास्त है और हर कोई ईश्वर से इस संकट अतिशीघ्र मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहा है। कोरोना से निबटने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क पहनकर अपनी-अपनी सुरक्षा का ध्यान भी हर आमजनमास इस समय अपनाने का प्रयास कर रहा है। अनलाक में कुछ मन्दिरों को भी पूजा अर्चना के लिए खोला गया है किन्तु फिर भी सभी कोरोना से बचने के लिए सोशल डिसटेंसिंग, हैंड सैनेटराईज, मास्क दो गज की दूरी आदि इसके उपायों को अपना रहे हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रहा है, इस कारण यह अटूट एवं अगाध् आस्था का केन्द्र भी रहा है। नवरात्रों में मन्दिरों में चहल पहल एवं भीड़ बढ़ जाती है। भले ही इस बार कोरोना महामारी ने नवरात्र आयोजनों पर भी अपनी मार से सभी को परेशान किया है किन्तु आस्था सभी के मन कूट कूट कर भरी है और सच्चे मन से हर भक्त अपने आराध्य देवी देवताओं की आराध्ना करके इस संकट से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड के रानीखेत के आसपास झूलादेवी, कालिका, मनकामेश्वर, पंचेश्वर, हैड़ाखान, शिव आदि मन्दिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। इनमें एक प्रमुख स्थान माँ झूला देवी का है। माँ झूलादेवी पर भक्तों की अगाध् आस्था है। रानीखेत नगर से चैबटिया मार्ग पर रानीखेत से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भव्य माँ झूलादेवी का मन्दिर। यह देवदार एवं बुरांश के वनों के मध्य स्थित है। मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी इस दरबार में आता है उसकी हर मुराद माँ झूलादेवी पूरा करती है। झूलादेवी को माँ सिंहसवारी, दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है लगभग आठवीं सदी में यह स्थान सुनसान चरागाह था। इस मन्दिर का निर्माण जंगली जानवरों से रक्षा के उद्देश्य को लेकर किया गया था। रानीखेत नगर से लगभग आठ किलोमीटर दूर शान्त एवं एकान्त रमणीक स्थल पर झूलादेवी मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान चैबटिया, पन्याली, पिलखोली, जैनोली, उपराड़ी, एवं आसपास के ग्रामीणों के जानवरों का चरागाह था, और आसपास का क्षेत्र घनघोर वनों से घिरा हुआ था। इस कारण खंूखार वन्य जीव आए दिन ग्रामीणों के मवेशियों को शिकार बना लेते थे। इससे चरवाहे एवं आसपास के ग्रामीण अत्यधिक दुःखी हो गये थे । एक दिन रात्राी में एक चरवाहे को माँ शेरोवाली ने दर्शन दिये और कहा कि चारागाह के पास की जमीन में माता की एक मूर्ति दबी हुई है, उसे निकालकर तुम मेरा मन्दिर बनाओ। चरवाहे ने सपने में माता के बताये के अनुसार ही चारागाह से मूर्ति निकालकर माता का मन्दिर उस स्थान पर बना दिया। इसके बाद वन्य जीव ग्रामीणों के मवेशियों का शिकार नहीं करते थे । माँ झूलादेवी पर पर लोगों की अटूट आस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर केवल नवरात्रों में ही नहीं अपितु पूरे वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, क्योंकि माँ झूलादेवी सबकी मनोकामना पूरी करती है। मन्दिर के चारों तरफ टंगी छोटी बड़ी सैकड़ो घण्टियां भक्तों के अगाध् आस्था के गवाह हैं । श्रावण मास में व चैत्रा की नवरात्रों में श्रद्धालु सुबह से पूजा अर्चना के लिए झूलादेवी के दरबार में पहुँच जाते हैं। रमणीय एवं एकान्त स्थल पर स्थित झूलादेवी के मन्दिर में आने पर मन को एक शान्ति प्राप्ति होती है। झूलादेवी के मन्दिर में मनोकामनाऐं पूरी होने पर श्रद्धालु घण्टियाँ चढ़ाते हैं। झूलादेवी का मन्दिर भव्य एवं आकर्षक है मन्दिर के बाहर माँ की सवारी सिंह ;शेरद्ध की बड़ी प्रतिमा बनी हुई है, मन्दिर के चारों ओर घण्टियाँ सजी हुई हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सभी धर्मिक आयोजनों को सीमित कर दिया गया है तो अधिकांश स्थानों पर कोरोना के सुरक्षा नियमों को अपनाकर ही पूजा अर्चना सम्पन्न करायी जा रही हैं। सभी जनमानस ईश्वर से वैश्विक महामारी कोरोना से जल्दी से जल्दी मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहे हैं। शीघ्र ही इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से सभी जनमानस को मुक्ति मिल जायेगी और पूरे विश्व में पुनः खुशहाली आ जाये, सभी जनमानस इसकी कामना कर रहे हैं।