‘पिघलता हिमालय’ अपनी स्थापना के 42वें साल में

गीता उप्रेती

इस अंक के साथ ही ‘पिघलता हिमालय’ अपनी स्थापना के 42वें साल में पहँुच चुका है। सन् 1978 में स्व.आनन्द बल्लभ उप्रेती-स्व.दुर्गासिंह मर्तोलिया ने जिस साहस और दृढ़ता के साथ इसकी शुरुआत की वह आज भी नियमित रूप से आपके सामने है। अपने लम्बे सफर में हमने संघर्ष किया है लेकिन वह मिशन जिसके लिये इसे स्थापित किया गया था जारी है। ऐसे समय में जबकि संचार व समाचार के अनगिनत साधन हैं, पिघलता हिमालय जैसे छोटे समाचार पत्र को बनाये रखना चुनौती है। फिर, स्व.उप्रेती व स्व.मर्तोलिया के मिशन पर इसे बनाये रखना और भी कठिन है लेकिन इस मिशन को चुनौतियां स्वीकार हैं। यही कारण है कि समाचार-विचार की दुनिया को रंगीन बनाकर परोसने के बजाए अपनों को जोड़ने का यह साधन है।
दुर्गा सिंह जी मात्रा 49 वर्ष आयु में इस दुनिया से विदा हो गये थे और उप्रेती जी भी 69 वर्ष आयु में हमें छोड़कर चले गये। इसके बाद श्रीमती कमला उप्रेती ने स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद दृढ़ता के साथ इस मिशन को निर्भीकता और स्वाभिमान के साथ बढ़ाया परन्तु नौ माह पूर्व वह भी 66 वर्ष की आयु में अचानक विदा हो गईं। ऐसे में एक बार फिर से हमारे सामने घोर संकट है लेकिन दिनोंदिन बढ़ती जा रही प्रतिस्पद्र्धा के बीच समय से इस पाती को परोसते हुए हमें लगता है स्व.उप्रेती, स्व.मर्तोलिया, श्रीमती कमला जी हमारे बीच हैं। उन्हीं का स्मरण करते हुए लगातार इसे आकर्षक बनाने की कोशिश की जा रही है। साधनों के आभाव के बावजूद दूरस्थ क्षेत्रों तक अपने प्रिय पाठकों के बीच पिघलता हिमालय पहँुच रहा है। इसे आॅनलाइन पढ़ने की व्यवस्था भी की गई है ताकि दूर तक समय से हमारा सन्देश पहँुचे और नई तकनीक से जुड़ी युवा पीढ़ी अपने प्रिय पत्र को आसानी से पढ़ सके। यूट्यूब चैनल सहित अन्य माध्यमों से भी पिघलता हिमालय को रफ्रतार दी है।
समय की धरा में हर हाथ मोबाइल है और हर क्षण की खबर। साथ ही विज्ञापनों की दुनिया में ‘जो दिखता है, वह बिकता है’ चल रहा है। फिर भी हमें नहीं भूलना चाहिये कि परम्परा और विश्वास हमेशा रहेगा। घोर संकट के समय भी हमारे संस्कार और हमारा विश्वास हमें उबरने में सहायक होता है। पिछले कुछ वर्षों से सरकार की विज्ञापन नीति में छोटे-मझले समाचार पत्रों को अवसर नहीं दिया जा रहा है। विज्ञापन का स्वाद बड़े मीडिया घरानों को लगाया जाता है ताकि नेताओं के बड़े और रंगीन फोटो प्रिंट मीडिया में छपें और इलक्ट्रोनिक मीडिया में दिखाये जाते रहें। इसे मीडिया मैनेजमेंट कहा जाने लगा है। हर प्रायोजित कार्यक्रम के पीछे बड़ा स्वार्थ जुड़ा है। अखबार की ऐसी फैक्ट्री में मिशन पीछे छूट जाता है और विज्ञापन का काबड़खाना शुरु हो जाता है। इस प्रकार के वातावरण में मिशन की पत्रकारिता सिर्फ अपने पाठकों के बल पर की जा सकती है।
प्रिय पाठको! आप ‘पिघलता हिमालय’ परिवार हो, आप ही इसके प्रतिनिधि हो, आप ही इसके विज्ञापनदाता हो, आप ही इसके प्रचार-प्रसार वाले भी। तभी आज ‘पिघलता हिमालय’ अपनी स्थापना के इक्तालिस साल पूरे कर चुका है। इसका सारा मैनेजमेंट सीमान्त से लेकर तराई-भाबर तक पफैले हमारे शुभचिन्तक हैं। उन स्थितियों में जब साप्ताहिक पत्रों का रिवाज ही लडखड़ा चुका है, पाठकों में पिघलता हिमालय का इन्तजार इसकी गहरी जड़ों को सिद्ध कर रहा है। इसके पाठकगण एक परिवार के रूप में जुड़े हैं, उनका भावनात्मक लगाव इससे जुड़ने और अपनी अगली पीढ़ी को जोड़ने में सहायक है। आपका यही स्नेह हमारा बल है। इसे आगे बढ़ाने में आप सुध्ी जनों से सहयोग की अपेक्षा है।

प्रकाश पन्त : एक सेवाभावी फार्मेसिस्ट, जो बना जनप्रिय नेता

हेम पन्त

जुलाई 2017 में GST लागू हुआ, उस महीने के अंतिम हफ्ते में रुद्रपुर के एक होटल में लगभग 250 व्यापारी और उद्योगकर्मियों को तत्कालीन वित्तमंत्री प्रकाश पन्त GST के बारे में समझा रहे थे। लगभग 1 घण्टे में उन्होंने तार्किक तरीके से, पुष्ट आंकड़ों की मदद से अपनी बात रखी और लोगों के प्रश्नों के स्वयं उत्तर दिए। मंत्री जी के बाद कर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अपनी बात रखने के लिए आए। कर अधिकारी ने अपनी बात इन शब्दों से शुरू की – “जिस तरह से मंत्री जी ने GST के बारे में आपको समझाया है, उसके बाद मेरे कहने के लिए कुछ नहीं बचता”। सिर्फ 59 साल के ऐसे योग्य और अनुभवी राजनेता का असमय निधन उत्तराखंड राज्य के लिए बहुत बड़ी क्षति है।

11 नवम्बर 1960 को एक सामान्य परिवार में जन्मे प्रकाश पन्त जी ने द्वाराहाट से फार्मेसी की पढ़ाई के बाद फार्मासिस्ट के तौर पर लगभग 4 साल तक सरकारी सेवा की। अपने बचपन में निष्काम भाव से पिथौरागढ़ शहर और आसपास के गांवों में गरीबों की सेवा करते हुए मैंने भी उन्हें देखा। तब पन्त जी हमारे गांव-पड़ोस में देर शाम तक बीमार, अशक्त लोगों को दवाई देते हुए और इंजेक्शन लगाते हुए अक्सर दिख जाते थे। पिथौरागढ़ सेना छावनी में ठुलीगाड़ नामक जगह पर एक छोटे से कमरे में उनकी फार्मेसी क्लिनिक पर जितनी भीड़ लगती थी, उतनी शायद ही पिथौरागढ़ शहर के किसी डॉक्टर के पास लगती होगी। उनकी बहुत कम मूल्य की (और अक्सर मुफ़्त भी) दवाइयों के बारे में ग्रामीण लोग अक्सर कहते थे – “हमको तो पन्त जी के हाथ की दवाई ही असर करती है”। सौम्यता, मधुर मुस्कान, कोमल स्वर और लोगों के बीच घुलमिलकर रहना उनका मूल स्वभाव था और यह अंत तक बना रहा।

अपनी सरकारी नौकरी के दौरान वह कर्मचारी यूनियन से जुड़े और उत्तराखंड के कई हिस्सों में विभिन्न जनआंदोलनों में सक्रिय रहे। बाद में नौकरी छोड़कर पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल से थोड़ी सी दूरी पर ‘पन्त फार्मेसी’ नाम से दवाइयों की दुकान शुरू की। खड़कोट क्षेत्र से पिथौरागढ़ नगर पालिका के सदस्य बनकर उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। उत्तराखंड राज्य बनने से पहले वह उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के सदस्य बने और सन 2000 में राज्य स्थापना के बाद उत्तराखंड विधानसभा के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। 2002 से 2007 और 2017 से मृत्युपर्यन्त पिथौरागढ़ के विधायक रहे। उनके जीवन में 2 बार उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री बनने के मौके आए, लेकिन दोनों बार वह राजनैतिक समीकरणों के कारण चूक गए। समय-समय पर उत्तराखंड सरकार में वित्त, संसदीय कार्य, पर्यटन, पेयजल, आबकारी और गन्ना सहित अनेक मंत्रालयों में उत्कृष्ट कार्य किया। दिखावे और सिफारिशी नेतागिरी से वह यथासम्भव दूर रहते थे और राज्यभर में धरातल पर सार्थक कार्य कर रहे लोगों के बारे में खुद जानकारी जुटाकर मिलने की कोशिश करते थे। देहरादून में पन्त जी के मंत्री आवास के वेटिंग रूम में चिपकाई गई एक निवेदनपूर्वक पर्ची से उनके सरल स्वभाव का अंदाजा आसानी से लग जाता है। इस पर्ची पर लिखा है – “कृपया मेरे सामने मेरी प्रशंसा व दूसरों की आलोचना न करें।”

पिथौरागढ़ शहर और आसपास के ग्रामीण लोगों के लिए प्रकाश पन्त जी एक पारिवारिक सदस्य जैसे थे। लगभग 35 वर्षों की निस्वार्थ सेवा के कारण अपने क्षेत्र के युवाओं, बुजुर्गों और महिलाओं के बीच वह एक चहेते नेता के रूप में लोकप्रिय रहे। पिथौरागढ़ में इंजीनियरिंग कॉलेज, हवाई सेवा, पेयजल योजनाओं और हर गांव में उनके व्यक्तिगत प्रयासों से किए गए अनेक छोटे-बड़े विकास कार्यों के कारण वह अपने क्षेत्र की जनता के दिलों पर राज करते हैं। कुशल-तार्किक वक़्ता और अध्ययनशील प्रकाश पन्त जी उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश के राजनैतिक परिदृश्य में एक साफ छवि के राजनेता के रूप में पहचाना जाता है।

राजनीति में रहते हुए भी वह अन्य गतिविधियों में खासे सक्रिय रहे। एक कवि और लेखक के रूप में उन्होंने 4 चर्चित पुस्तकें लिखीं। राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पदक भी जीते। अपने सार्वजनिक जीवन में वह जनता के लिए सदैव उपलब्ध रहे। राज्य या देश के किसी भी स्थान पर उनसे कोई भी आसानी से मिल सकता था। उत्तराखंड राज्य के वरिष्ठतम मंत्री के पद पर रहते हुए भी वह अपने मोबाइल पर हर पल लोगों की समस्याएं सुनते थे और यथासम्भव समाधान भी करते थे। छोटे-बड़े कार्यक्रमों में सिर्फ एक फोन के बुलावे पर राज्य के कोने-कोने में पहुंचने वाले नेता के रूप में लोग उनको लंबे समय तक याद रखेंगे।

ऐसे दौर में जब लोग राजनीति में स्वच्छ छवि वाले सेवाभावी लोगों की कमी होती जा रही है, उस समय प्रकाश पन्त जी जैसे सर्वप्रिय नेता और जनता के हितैषी व्यक्ति का आकस्मिक निधन उनके परिवार-पार्टी या उत्तराखंड की ही नहीं, पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।