कपकोट से अल्मोड़ा पैदल जाते थे पढ़ाई के लिये


श्रीमती कौशल्या सिंह से बातचीज
कपकोट से अल्मोड़ा पैदल जाते थे पढ़ाई के लिये
–व्यापार के सिलसिले में गरुड़ में बसे शौका
–कपकोट की उन्नति में भाई प्रेमसिंह  धर्मशक्तू हमेशा सक्रिय रहे
–चमोली में सयाना परिवार का बहुत सम्मान रहा है
डाॅ.पंकज उप्रेती
पहाड़ की मातृशक्ति हर क्षेत्रा में अग्रणीय रही है। पर्वतीय अर्थव्यवस्था की रीड़ के रूप में महिलाओं की अग्रणीय भूमिका को सब जानते हैं लेकिन विपरीत स्थिति में भी शिक्षा-चिकित्सा-बैंकिंग-संचार- सुरक्षा बल-व्यापार-खेल में हाथ आजमाने वाली महिलाएं अपनी निपुणता के लिये पहचान रखती हैं। इन दक्ष महिलाओं की बात ही कुछ और है। ऐसी ही सपफल महिलाओं में श्रीमती कौशल्या देवी हैं।
    जोहार के व्यापारी परिवार में हरीश सिंह धर्मशक्तू ने व्यापार के सिलसिले में कपकोट-भराड़ी में डेरा डाला था। इनके पुत्र प्रेम सिंह धर्मशक्तू हुए, जिनका कुछ समय पूर्व निधन हो चुका है। प्रेमसिंह  जी भराड़ी में रहते हुए जोहार के विकास के लिये चिन्ता करते थे और हमेशा भराड़ी से शामा होते हुए यातायात की वकालत करते रहे। हरीश सिंह जी की पुत्रियों में भागीरथी टोलिया पत्नी जगत सिंह टोलिया ;हल्द्वानी, कौशल्या देवी पत्नी एच.एस.सिंह ;बरेली हैं।
    कूर्मांचल नगर बरेली में रहने वाली कौशल्या देवी का अधिकांश समय गढ़वाल और फिर बरेली में बीता लेकिन अतीत  की झलकियाँ उनकी स्मृतियों में बनी हैं।  वह बताती हैं कि व्यापार के सिलसिले में उनके पिता ने गरुड़ में दुकान की। वहीं मेरा जन्म हुआ और पढ़ाई कपकोट में हुई। तब कपकोट हाईस्कूल में उतरौड़ी के हीराबल्लभ पाण्डे जी प्रधानाचार्य और शामा के बलवन्त सिंह जी उप प्रधानाचार्य
थे। इसके बाद इण्टर व स्नातक शिक्षा के लिये अल्मोड़ा का रुख किया। श्रीमती कौशल्या बताती हैं कि पढ़ाई के लिये कपकोट से पैदल यात्रा अल्मोड़ा के लिये करनी होती थी। अल्मोड़ा में किराये के मकान में रहकर पढ़ाई की और फिर लखनउ के सिल्वर जुवली हैल्थ स्कूल से ट्रेनिंग की। लखनउ का हैल्थ स्कूल अब परिवार नियोजन का निदेशालय है। सन् 1960 में जब पौड़ी जिले से चमोली जिला बनाया गया, उसी समय चमोली में पोस्टिंग हुई। चमोली में सयाना परिवार का बहुत सम्मान रहा है। जमन सिंह सयाना जी के पास कमरे की ढूंढ करते हुए पहँुची थी तो उन्होंने बहुत मदद की। इसके बाद जौनपुर, बाराबंकी, फैजाबाद में जाना हुआ। चैाधरी चरण सिंह की सरकार के जमाने में जब हैल्थ वर्करों की पढ़ाई की ओर ध्यान देना छोड़ हमें नौकरी से निकाला जा रहा था, बड़ा आन्दोलन हुआ। सरकार ने आदेश निकाला कि इन कर्मचारियों को वेतन के लिये अन्य स्थानों पर समायोजित किया जाए। फिर मुझे टीबी क्लीनिक में नियुक्ति मिल गई। इसके लिये मेडिकल कालेज लखनउ में ट्रेनिंग करनी पड़ी। पटना और पूना में भी कोर्स करने का बेहतर अनुभव हुआ। तब से लगातार एएनएम, जेएनएम, हैल्थ वर्करों को पढ़ाने के कार्य में लगातार व्यवस्तता रही। फैजाबाद, देवरिया के बाद बरेली में तैनाती मिली। 1997 में सेवानिवृत्ति के बाद भी कौशल्या जी के अनुभवों का लाभ लेने के लिये शिक्षण संस्थानों में उन्हें लगातार बुलाया जाता रहा है।  हैल्थबर्करों को शिक्षण के लिये उनकी सक्रियता आज तक भी है। पैरामेडिकल के क्षेत्र में उनके कई होनहार शागिर्द हैं।
    कौशल्या जी की यादों में आज भी उनके हिस्से का पहाड़ जिन्दा है। वह कहती हैं कि व्यापार के सिलसिले में गरुड़ में शौका व्यापारी बसे और मेहनती बच्चों ने कठिन दौर में भी शिक्षा से जुड़कर अपने रास्ते तलाशे।

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