पि.हि.प्रतिनिधि
सीमान्त क्षेत्रा में मल्लादुम्मर में होने वाली हरि प्रदर्शनी क्षेत्रा की इकलौती यादगार प्रदर्शनी है जो आजादी से लेकर आज तक प्रतिवर्ष होती है। इसमें कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने के अलावा स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण किया जाता है। स्व.हरिसिंह ज्यू के याद में होने वाली इस प्रदर्शनी को शुरु करवाने वाले नरसिंह जंगपांगी सहित यादों की लम्बी श्रृंखला को सहेजे श्रीमती कमला रावत उत्तरांचल विहार हल्द्वानी में रहती हैं।
बात जंगपांगी परिवारों की करते हैं तो पता चलता है कि गौचर, थल के पास पतेत में जंगपांगियों का परिवार बसा। यहीं से लगे हुए ससखेत में जंगपांगी परिवार गया। किशन सिंह, मान सिंह, नर सिंह तीन भाईयों ने ससखेत को आबाद किया। किशन सिंह बहुत ही मान्यता वाले व्यक्ति थे और उनकी बात सभी को मान्य थी। इन्हीं के पुत्र हैं- पान सिंह, दीवान सिंह, राजेन्द्र सिंह। दूसरे भाई मान सिंह थे, जिनके पुत्र हुए- मंगल सिंह और महेन्द्र सिंह ‘महन्त’। तीसरे अर्थात छोटे भाई नरसिंह की सात पुत्रियों व एक पुत्र हुए। विवाहित पुत्रियों में खगौती धर्मशक्तू, चन्द्रप्रभा टोलिया, राजेश्वरी पांगती, लक्ष्मी मर्तोलिया, कमला रावत, बसन्ती टोलिया व कोकिला हुईं। पुत्र प्रहलाद सिंह जी ससखेत में हैं। प्रहलाद जी के पुत्र-पुत्रियों में- भूपेन्द्र, महिपाल, देवेन्द्र/दीपू, अनीता पांगती, जुगुनू पांगती, कविता हैं।
नरसिंह जी की पुत्री श्रीमती कमला रावत बताती हैं कि ताउ जी किशन सिंह की बड़ी धाक थी और जनहित के मुद्दों पर सब उनके साथ थे। उनके बाद छोटे ताउ मानसिंह ने भी समाज को जोड़ते हुए परम्परा को बनाये रखा। बुजुर्गों के बाद पिता नरसिंह में भी जिम्मेदारी आई जिसे उन्होंने निभाया। उनका बड़ा परिवार था। तब कृषि व पशु आधारित कुटीर उद्योगधन्धों पर सभी लोग लगा करते थे। खुशहाल गाँवों में चहल-पहल थी। माइग्रेशन सिस्टम में बुर्फू, मल्लादुम्मर, ससखेत तक लोगों का आवत रहती थी। पशुओं के साथ-साथ कई कामगार भी होने से पूरा परिवार व्यस्त था। ऐसे में पठन-पाठन भी प्रभावित होता। पढ़ने की लगन के कारण अवरोध् के बावजूद उन्होंने पढ़ा। तब ससखेत से अल्मोड़ा आने में पांच दिन लग जाते थे। वह पुराने रास्ते तो अब दिखाई भी नहीं देते हैं। अल्मोड़ा में बुआ तुलसी रावत-स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा सिंह रावत के घर दूरस्थ क्षेत्रा से बच्चे जाते थे। छात्राओं को बुआ जी के घर में रहने का इन्तजाम था और छात्रों के लिये जोहार भवन में रुकने की व्यवस्था होती थी। अल्मोड़ा में आकर पढ़ने वाले कई छात्रा-छात्राएं काफी आगे पदों तक पहुंचे हैं। जोहार की प्रथम ग्रजुएट इन्द्रा दीदी थीं, जो लखनउ में प्रधनाचार्या रहीं बाद में हल्द्वानी में भी थी।
पढ़ाई के बाद कमला जी जखोली ;टिहरी में एडीओ बनीं। शेरसिंह रावत के साथ विवाह उपरान्त इन्होंने अपनी सरकारी सेवा छोड़ दी। उन दिनों वैसे भी महिलाओं को कम ही नौकरी में भेजा जाता था। अपनी घर-गृहस्थी में रमने के बाद आज श्रीमती कमला रावत पुरानी यादों को तरोताजा रखे हुए बचपन को याद करती हैं। गाँव-घरों के सामुहिक आयोजन, कुटीर उद्योग, व्यापार सिलसिले में यात्रा, पैदल रास्तों होकर मीलों पढ़ने जाना……………………….।
पिघलता हिमालय 1 अगस्त 2016 के अंक में प्रकाशित