बातचीज
पि.हि.प्रतिनिधि
बदरीनाथ और केदारनाथ हाईवे आज ट्रैफिक के दबाव से लद चुका है। पहले इस स्थान पर पेड़ों में फल लदे रहते थे। किसी प्रकार की हाय-तौबा नहीं थी। कर्णप्रयाग ;चमोली के समाज सेवी राधकृष्ण भट्ट अपने अतीत का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनके पूर्वज पिथौरागढ़ जिले के विषाड़ से आकर यहाँ बसे। उनकी काफी जमीन थी, कुछ सड़क, कुछ थाने, कुछ तहसील, कुछ इण्टर कालेज भवन इत्यादि में चली गई लेकिन व्यवस्था का खेल ऐसा कि भूमि का पैसा नहीं मिल सका है।
करीब 150 साल पूर्व विषाड़ से श्रीराम कृष्ण भट्ट और उनके भाई रामप्रसाद भट्ट व्यापार कर्णप्रयाग आये थे। इससे पहले ये लोग चैखुटिया गेवाड़ रहे। इन्हीं के वंशज सफल कारोबारियों के रूप में जाने जाते हैं। श्री राधकृष्ण बताते हैं कि पूरा बचपन ही कर्णप्रयाग बीत गया ऐसे में विषाड़ यदा-कदा जाते हैं। मन्दिर में हाथ जोड़कर वापस फिर यहीं………। पहले साधन न होने के कारण उनके परदादा गाँव से चले आये। अब वर्षों के बाद यदि परिवार को कोई गाँव जाता है तो विकास के मायने फिर शून्य दिखाई दे रहे हैं। नदियों में स्टोन क्रशर लग चुके हैं। कोई जाना-पहचाना सा नहीं दिखाई दिया तो चाय की दुकान में चाय पीकर गाँव निहार भर लेने का मलाल रहता है। भट्ट जी बताते हैं- उनके पिता कामरेड स्व. श्रीकृष्ण भट्ट को नेहरु जी के समय नजरबन्द किया गया था। उनके साथ गरुड़ के तिवारी जी और विद्यासागर नौटियाल ;जो टिहरी के विधयक रहे थे। ये लोग 1964 की रात्रि को रिहा होकर घर आये। पिता जी ने कभी भी राजनीति के साथ टिकट लेने में दिलचस्पी नहीं ली। वह अपने कारोबार के अलावा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते थे। कभी कोर्ट कचहरी तो कभी तिहाड़ जेल तक की यात्रा उनके भाग्य में थी। सन् 1971 में स्व.नरेन्द्र सिंह भण्डारी ;जो विधयक भी रहे अपने साथ पिता जी को कांग्रेस में ले गये। श्री भट्ट कहते हैं कि तब राजनीति की अपनी मर्यादा थी। वर्तमान राजनीति में उच्छृंखलता बढ़ती जा रही है। जो विकास की सोच से दूर है।
पिघलता हिमालय 16 नवम्बर 2015 से