केशवदत्त अवस्थी अग्रणीय शिक्षकों में रहे हैं



अस्कोट राजा के दीवान परिवार से सम्बन्ध्
स्व. केशवदत्त अवस्थी अस्कोट गर्खा के उन बुद्धिजीवियों में रहे हैं जिन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये अपने को समर्पित किया। इनका सम्बन्ध् अस्कोट राजा के दीवान अवस्थी परिवार से है। इनके पिता मोतीराम अवस्थी राजा के दीवान थे। इसी परम्परा में इनके बड़े भाई भी पदवी संभाले हुए रहे। केशवदत्त बचपन से ही बिलक्षण प्रतिभा के थे और शिक्षा में विशेष रुचि के कारण इन्हें उसी प्रकार की सुविधा दी गई।
   केशवदत्त जी का जन्म अस्कोट गर्खा इलाके के नरेत ग्राम में सन् 1902 को हुआ था। इनके पिता स्व. मोतीराम अवस्थी व माता स्व. श्रीमती हंसा अवस्थी थे। बाल्यकाल से ही प्रखर बुद्धि के केशव ने मिडिल की परीक्षा जूनियर हाईस्कूल बजेटी में प्राप्त की। हाईस्कूल व इण्टर की परीक्षा रैमजे इण्टर कालेज अल्मोड़ा से पूर्ण की। स्नाकत की पढ़ाई 1927 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। पढ़ाई के साथ-साथ बेहतर खिलाड़ी केशवदत्त जी मेरठ यूनिवर्सिटी की फुटबाल टीम का नेतृत्व किया। इनके बड़े भाई हरिबल्लभ अवस्थी अस्कोट राजा के दीवान थे।

   केशवदत्त अवस्थी ने स्नातक उत्तीर्ण करने के बार काशीपुर के एक विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक नियुक्त हो गये। एक वर्ष बाद इनका स्थानान्तरण लोहाली ;नैनीताल में हो गया। उसके बाद भाॅतड़ ;थल, दशाईथल में रहे। गंगोलीहाट के जाह्नदेवी नौले के पास इन्होंने संस्कृत पाठशाला की स्थापना की। बाद में गर्खा जनता कालेज के प्रथम प्रधानाध्यापक बने। अवस्थी जी गणित, अंग्रेजी, संस्कृत, इतिहास, उर्दू के प्रकाण्ड विद्वान थे।
    इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इनके इतिहास के गुरु सी.आर.गोरखपुरी व ईश्वरी प्रसाद थे। एक बार नारायण नगर ;डीडीहाट में नारायण स्वामी ने इन्हें अपने विद्यालय में आने का प्रस्ताव किया लेकिन स्वतंत्रात प्रकृति के केशवदत्त जी ने जाने से मना कर दिया। सन् 1942 में  अंग्रेज पता लगाते हुए इनके ग्राम नरेत पहँुचे और पूछा- यहाँ कौन व्यक्ति ग्रेजुएट करके आया है। जानकारी मिलने पर कि केशवदत्त ग्रेजुएट हैं उन्हें प्रस्ताव दिया गया कि अंग्रेजी सेना में सीध्े लेफ्रिटनेंट बनाया जायेगा लेकिन अवस्थी जी ने अंग्रेजों के साथ जाने से मना कर दिया। उन्होंने आजीवन शिक्षण कार्य को ही अपनाया।
    सेवानिवृत्ति के बाद नेपाल सरकार ने उन्हें अपने बुलावा भेजा और वह दो वर्ष नेपाल के थाराकोट में प्रधानाध्यापक रहे। इनके प्रमुख शिष्यों में मोती लाल चैधरी, वंशीलाल विश्वकर्मा, फकीर दत्त ओझा, महिपाल सिंह भैसोड़ा, कृपाल सिंह भैसोड़ा, भुवनचन्द्र गुणवन्त आदि रहे। इनके दो पुत्र थे। बड़े पुत्र स्व. गोविन्द बल्लभ अवस्थी एमईएस पिथौरागढ़ में एसडीओ के पद पर रहे तथा छोटे पुत्र जगदीश चन्द्र अवस्थी काॅपरेटिव बैंक से सेवानिवृत्त हो गए हैं। अवस्थी जी का का 13 जून 1979 को अपने पैतृक निवास नरेत में निधन हुआ। इनके तीन पौते हैं- सी.एम.अवस्थी डहरिया हल्द्वानी, प्रदीप अवस्थी विवेकानन्द इण्टर कालेज पिथौरागढ़, दिनेश अवस्थी मीडिया से जुड़े हैं। स्व.अवस्थी के भतीजे ध्रणीध्र जी लखनउ विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग में रीडर थे और छोटे भाई आनन्दमोहन नाॅर्थ जोन देहरादून ओएनजीसी में जनरल मैनेजर से सेवानिवृत्त हुए।
    इस प्रकार हम देखते हैं कि अवस्थी परिवार की शाखाएं तमाम जगह फैल चुकी हैं लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े भाई बन्ध्ु परम्पराओं को बरकरार रखे हुए हैं

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